Draft Title 1: लो, अब मुझे उठता हुआ देखो Draft Title 2: मैं उठ रहा हूँ Draft Title 3: लखनऊ का विकास नगर, ठूंठों का बढ़ता ठिकाना मेरे शरीर और तना को काट कर मुझे ठूंठ बनाकर, य़ह न समझ लेना कि लड़ नहीं सका, तो हार गया। मैं ओजस्व, अनंत और अमर हूँ, रक्तबीज का बीज मैं ही हूँ। मेरे रक्त का कतरा कतरा बहा दिया, फिर भी मृत्यु शैय्या से अभी मैं कोसों दूर हूँ। मानव उत्पत्ति के अजस्र, अभूतपूर्व से मैं मौजूद हूँ, मानव के इति के पश्चात भी मौजूद रहूंगा। मेरा नाश विनाश के प्रयास के लिए भी मेरी ही ज़रुरत पड़ती है। कुल्हाड़ी की धार तो लोहे से बनती है परन्तु बूटा की लकड़ी तो मेरे तना को संजोकर ही बनता है। मुझे हरे भरे पेड़ से ठूंठ बनाने के लिए भी पहले मेरे ही तना का सहारा लेना पड़ता है। मैं मानव नहीं कि एक वार में धराशायी हो जाऊं, हज़ार बार कट कर भी पुनर्जीवित हो सकता हूँ। मेरे लहू पर बारिश की दो बूंद गिरना ही मौत से मेरी माफ़ी है, मेरा हर तना एक नया दरख...